वैश्विक आर्थिक मंदी से विश्व भर की अर्थव्यवस्थाएं जूझ रही हैं. इस कारण एक ओर जहाँ उद्योग जगत में वैश्विक वित्तीय संकट का साया गहरा रहा है , वहीं दूसरी ओर विभिन्न उद्योगों में कम करने वाले पेशेवरों पर भी छटनी के काले बदल मंडरा रहे हैं । बड़ी -बड़ी कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों की छटनी करके अपने खर्चों में कमी करके आर्थिक मंदी से पार पाने की कोशिश में जुटी हैं ।
ऐसी विषम परिस्थितियों में, जबकि दुनिया भर की बड़ी कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों की लगातार छटनी कर रही हैं और हजारों विशेषज्ञों की नौकरियाँ इस मंदी की भेंट चढ़ चुकी हैं, भारतीय उद्योग जगत की अलग -अलग क्षेत्र की कई शीर्ष कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों की छटनी करने से इंकार कर दिया है . इन कंपनियों में आईटी क्षेत्र की इन्फोसिस टेक्नोलोजी , ऑटो क्षेत्र की बजाज ऑटो , इंजीनियरिंग क्षेत्र की कम्पनी लार्सन एंड टुब्रो , निजी बीमा क्षेत्र की कम्पनी मेक्स न्यूयार्क लाइफ इंश्योरेंस और मैट लाइफ आदि नामी कम्पनियाँ शामिल हैं .भारतीय कारपोरेट जगत की इन चोटी की कंपनियों के इस कदम से विश्व उद्योग जगत को एक सकारात्मक संदेश जाता है . इस बारे में हाल ही में इन्फोसिस के सह -अध्यक्ष नंदन निलेकनी का इंडिया इकनॉमिक समिट में दिया गया बयान काफ़ी अहम् है . उनका कहना है कि हम अपने खर्चों को कम करने और उत्पादकता को बढ़ने के अन्य उपाय कर रहे हैं ।
जाहिर है, कम्पनी की उत्पादकता विशेषज्ञों और कर्मचारियों की छटनी करके तो नही बढाई जा सकती . जहाँ तक खर्चों का सवाल है, तो कम्पनियाँ अपने उत्पादों के प्रचार के लिए विज्ञापनों और शो-बाजी पर ही अंधाधुंध खर्चा करती हैं . कंपनियों को अपने उत्पादों पर आडम्बरों और शो-बाजी पर होने वाले अत्यधिक व्यय को रोकने या कम करने की पहल करनी होगी . ये शो-बाजी किसी उत्पाद को तात्कालिक लाभ तो दिला सकती है , लेकिन दीर्घकालिक लाभ तो अंततः उत्पाद की गुणवत्ता पर ही निर्भर है . और उत्पाद की गुणवत्ता को अच्छे विशेषज्ञ ही बनाए रख सकते है . इसके अलावा कम्पनियों के निदेशकों और आला आधिकारियों को मिलने वाला भरी भरकम वेतन भी जग जाहिर है . परिस्थितियों को देखते हुए इन आधिकारियों के बोनस और अन्य भत्तों के रूप में मिलने वाली मोटी रकम पर भी कुछ हद तक लगाम लगानी होगी ।
इस सब को देखते हुए भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों और पेशेवरों के साथ -साथ नई पीढी के स्नातकों को घबराने की आवश्यकता नही है । सम्भावनाएं बहुत हैं, लेकिन असल बात है उन पर खरा उतरने की . जो अपेक्षाओं और क्षमताओं की कसौटी पर खरे उतरते हैं, उनके लिए अवसरों की कोई कमी नही होती ।