उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले का छोटा सा गांव रामपुर ढिबरी। सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है यह गाँव। एक ही रात में पूरी दुनिया के कौतुहल का केन्द्र बन गया। कारण, ऑस्कर विजेता लघु फ़िल्म "स्माइल पिंकी" की नौ-वर्षीया नायिका पिंकी इसी गाँव की है। अमेरिकी फ़िल्म निर्माता मगन मेलन द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म ऐसे बच्चों की कहानी है जिनके होंठ जन्म से कटे हुए है। फ़िल्म के केन्द्र में नौ-वर्षीया बच्ची पिंकी है, जो इस बीमारी के कारण खेलना, कूदना और हँसना भूल चुकी है। बाद में वाराणसी के डॉक्टर सुबोध सिंह सर्जरी करके उसके होंठ ठीक करते हैं। इस वृत-चित्र को ऑस्कर अवार्ड से नवाजा गया है। ऐसे बच्चों के होठों को ठीक करने की कोशिश में 'स्माइल ट्रेन' संगठन भी जुटा हुआ है।
पिंकी की माँ शिमला देवी और मजदूर पिता राजेन्द्र सोनकर आज बहुत खुश हैं। लेकिन पिंकी की माँ के इन शब्दों पर भी जरा गौर करें "मुझे आज तो खुशी हुई है, मगर उस दिन ज्यादा खुशी हुई थी, जब डॉक्टर ने उसके होंठ ठीक कर दिए थे।" ये शब्द कहीं गहरे तक जाते हैं। "स्माइल पिंकी" केवल पिंकी के होंठ ठीक हो जाने की कहानी भर नही है। बल्कि यह उस बच्चे के साथ-साथ माँ-बाप की परेशानी और असहनीय दुःख का एक मार्मिक वर्णन है। यह हमारी जन-स्वास्थ्य व्यवस्था का भी काला सच है। आज देश में लाखों बच्चे कटे होंठ लेकर पैदा होते हैं। यह एक मामूली शारीरिक दोष है, जो एक छोटे से ऑपरेशन से ठीक हो जाता है। लेकिन हमारे देश में ये कटे होंठ एक ऐसी बद-किस्मत हकीकत है जिससे ज्यादातर को पूरे जीवन मुक्ति नही मिल पाती। इस शारीरिक दोष का निवारण तो हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था के तहत नियमित रूप से ही हो जाना चाहिए, किंतु ऐसा हो ही नही पता है। कटे होंठ ही अकेली समस्या नही है। नेत्रहीनता भी हमारे देश की एक गंभीर समस्या है। पोलियो या कुष्ठ रोग की समूल नाश की पुख्ता व्यवस्था आज भी हमारे स्वास्थ्य विभाग के पास नही है। कुपोषण-जनित शारीरिक दोष बच्चों में कहीं भी दिख जायेंगे। यदि हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था सही ढंग से कम करे तो फिर किसी विदेशी NGO को सारी दुनिया का ध्यान खींचने के लिए किसी वृत-चित्र बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
कारण कुछ भी हो हमारी जन-स्वास्थ्य व्यवस्था में सरकार की भागीदारी नही दिख रही है। बावजूद इसके कि हम दुनिया की सबसे तेज तरक्की वाली अर्थ-व्यवस्था हैं और विश्व-शक्ति बनने की तैयारी में हैं। लेकिन अधि-संख्य गरीबों की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान भी आम आदमी के घर पहुंचना बाकी है। संसद में ऑस्कर जीतने पर हर्ष व्यक्त कर रहे सांसदों में कितनों ने इस पर सोचा होगा?
पिंकी की माँ शिमला देवी और मजदूर पिता राजेन्द्र सोनकर आज बहुत खुश हैं। लेकिन पिंकी की माँ के इन शब्दों पर भी जरा गौर करें "मुझे आज तो खुशी हुई है, मगर उस दिन ज्यादा खुशी हुई थी, जब डॉक्टर ने उसके होंठ ठीक कर दिए थे।" ये शब्द कहीं गहरे तक जाते हैं। "स्माइल पिंकी" केवल पिंकी के होंठ ठीक हो जाने की कहानी भर नही है। बल्कि यह उस बच्चे के साथ-साथ माँ-बाप की परेशानी और असहनीय दुःख का एक मार्मिक वर्णन है। यह हमारी जन-स्वास्थ्य व्यवस्था का भी काला सच है। आज देश में लाखों बच्चे कटे होंठ लेकर पैदा होते हैं। यह एक मामूली शारीरिक दोष है, जो एक छोटे से ऑपरेशन से ठीक हो जाता है। लेकिन हमारे देश में ये कटे होंठ एक ऐसी बद-किस्मत हकीकत है जिससे ज्यादातर को पूरे जीवन मुक्ति नही मिल पाती। इस शारीरिक दोष का निवारण तो हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था के तहत नियमित रूप से ही हो जाना चाहिए, किंतु ऐसा हो ही नही पता है। कटे होंठ ही अकेली समस्या नही है। नेत्रहीनता भी हमारे देश की एक गंभीर समस्या है। पोलियो या कुष्ठ रोग की समूल नाश की पुख्ता व्यवस्था आज भी हमारे स्वास्थ्य विभाग के पास नही है। कुपोषण-जनित शारीरिक दोष बच्चों में कहीं भी दिख जायेंगे। यदि हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था सही ढंग से कम करे तो फिर किसी विदेशी NGO को सारी दुनिया का ध्यान खींचने के लिए किसी वृत-चित्र बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
कारण कुछ भी हो हमारी जन-स्वास्थ्य व्यवस्था में सरकार की भागीदारी नही दिख रही है। बावजूद इसके कि हम दुनिया की सबसे तेज तरक्की वाली अर्थ-व्यवस्था हैं और विश्व-शक्ति बनने की तैयारी में हैं। लेकिन अधि-संख्य गरीबों की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान भी आम आदमी के घर पहुंचना बाकी है। संसद में ऑस्कर जीतने पर हर्ष व्यक्त कर रहे सांसदों में कितनों ने इस पर सोचा होगा?