प्रमोद मुतालिक, श्रीराम सेना के मुखिया! भारत की संस्कृति के महान विशेषज्ञ! संस्कृति के रक्षक! और क्या-क्या कहूं.... समझ में नही आता। ये सारे विशेषण कम पड़ रहे हैं प्रमोद मुतालिक का गुणगान करने के लिए। इनका भारतीय संस्कृति का ज्ञान इतना व्यापक है कि अच्छे-अच्छों की बोलती बंद दे। इनका कहना है कि प्यार करना हमारी संस्कृति के खिलाफ है। इनके हिसाब से तो हमारी संस्कृति में नफरत करना है। मारपीट करना, गुंडई करना, लोगों में दहशत फैलाना ही हमारी संस्कृति है। इन्होने अपने गैंग का नाम श्रीराम के नाम पर रखा है। ये राम के अनन्य भक्त हैं। तभी तो इन्होने श्रीराम के नाम का बेजा इस्तेमाल किया है। इनको तो ये भी नही मालूम कि श्रीराम ने भी तो प्रेम का ही संदेश दिया था। श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे तो क्या ये प्रेम नही था। शास्त्रों के अनुसार श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार थे। भगवान विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। श्रीकृष्ण को तो साक्षात् प्रेम का अवतार माना जाता है।
इन सब बातों को देखते हुए मुझे लगता है कि श्रीमान मुतालिक पागल हो गए हैं। वो क्या कर रहे हैं, क्या कह रहे हैं, उसका उनको पता ही नही है। पागल आदमी के साथ ऐसा ही होता है। वो क्या करता है उसे पता ही नही रहता। तो फ़िर इतना हो-हल्ला मचाने की क्या जरुरत है। बेचारे मुतालिक को डॉक्टर की जरुरत है, न कि हाय-तौबा मचाने की। मेरे हिसाब से तो लोगों को एक अच्छे डॉक्टर से मुतालिक का इलाज कराने की व्यवस्था करनी चाहिए।
वैसे इस सारे घटना-क्रम पर मीडिया की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एक निहायत ही घटिया और बेहूदा नाटक को मीडिया ने किस तरह से पेश किया है ये सभी अच्छी तरह से जान ही गए हैं, मैं क्या कहूं! मीडिया ने अपनी हरकतों से एक मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति को रातों-रात मशहूर कर दिया। वाह रे मीडिया!! इन ऊट-पटांग मसलों की अपेक्षा मीडिया अगर उचित मामलों पर ज्यादा ध्यान दे तो इस बेचारे देश का काफी भला हो सकता है ...
इन सब बातों को देखते हुए मुझे लगता है कि श्रीमान मुतालिक पागल हो गए हैं। वो क्या कर रहे हैं, क्या कह रहे हैं, उसका उनको पता ही नही है। पागल आदमी के साथ ऐसा ही होता है। वो क्या करता है उसे पता ही नही रहता। तो फ़िर इतना हो-हल्ला मचाने की क्या जरुरत है। बेचारे मुतालिक को डॉक्टर की जरुरत है, न कि हाय-तौबा मचाने की। मेरे हिसाब से तो लोगों को एक अच्छे डॉक्टर से मुतालिक का इलाज कराने की व्यवस्था करनी चाहिए।
वैसे इस सारे घटना-क्रम पर मीडिया की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एक निहायत ही घटिया और बेहूदा नाटक को मीडिया ने किस तरह से पेश किया है ये सभी अच्छी तरह से जान ही गए हैं, मैं क्या कहूं! मीडिया ने अपनी हरकतों से एक मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति को रातों-रात मशहूर कर दिया। वाह रे मीडिया!! इन ऊट-पटांग मसलों की अपेक्षा मीडिया अगर उचित मामलों पर ज्यादा ध्यान दे तो इस बेचारे देश का काफी भला हो सकता है ...
आपकी समस्या यह है कि एक ही शब्द को आप कभी सामान्य अर्थ में प्रयुक्त कर रहे हैं और् जरूरत पड़ने पर उसे व्यापक अर्थ में भी प्रयोग कर ले रहे हैं। इससे आप बड़ी आसानी से कुतर्क कर पा रहे हैं। पता नहीं आपको इस बात का भान है कि नहीं।
ReplyDeleteएक 'एड्स वाला' प्यार होता है, और एक व्यापक प्यार होता है। कोई मिट्टी से प्यार करता है; कोई गोबर से तो कोई सोने से। कोई जानवर से , कोई पेड़-पौधों से कोई मशीनों से। मुझे तो हिन्दी से प्यार है। लेकिन इसके लिये मै वैलेन्टिन दिवस का इन्तजार नहीं करता। इस प्रेम के लिये किसी पब या पार्क के अंधेरे कोने में जाने की जरूरत नहीं होती।
भारत गर्म देश है। यहाँ के रीति-रिवाज अपने हिसाब से होने चाहिये। पश्चिम की भोंडी नकल के आधार पर नहीं।
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ReplyDeleteएक 'एड्स वाला' प्यार होता है, और एक व्यापक प्यार होता है। कोई मिट्टी से प्यार करता है; कोई गोबर से तो कोई सोने से। कोई जानवर से , कोई पेड़-पौधों से कोई मशीनों से। मुझे तो हिन्दी से प्यार है। लेकिन इसके लिये मै वैलेन्टिन दिवस का इन्तजार नहीं करता। इस प्रेम के लिये किसी पब या पार्क के अंधेरे कोने में जाने की जरूरत नहीं होती।
ReplyDeleteप्यार करने के लिये दारू नहीं पीना पडाता है।
पब नहीं जाना पडता है।
अनुनाद सिंह जी, कि ये बाते कुछ पल्ले पडी होगी तो शायद आईंदा ऐसा नहीं लिखोगे।
एक नाम और है, हिटलर जो भारत में तानाशाही लेन की कोशिश कर रहे है
ReplyDeleteश्रीराम सेना, शिव सेना, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, भाजपा, संघ सभी पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिये… ऐसा कुछ कल टीवी पर एक कांग्रेसी कह रहे थे… यानी सिर्फ़ सिमी, तालिबान और कांग्रेस को ही इस देश में रहने देना चाहिये…
ReplyDeleteप्रदीप जी श्रीराम सेना और प्रमोद मुतालिक जो कुछ कर रहें हैं वह एक गंभीर विषय पर बहस, प्रतिवाद और प्रतिरोध का एक गलत तरीका है. उनके संस्कृति ज्ञान के विषय में मैं कुछ नहीं जानता. परन्तु वैलेंटाइन डे के नाम पर जिस तरह युवाओं को गलत राह दिखाई जा रही है वह रोकने के ही काबिल है. पारिवारिक प्रेम की अभिव्यक्ति हेतु भारतीय संस्कृति में भी अनेक पर्व है. पति - पत्नी के लिए करवा चौथ, भाई-बहिन के लिए रक्षाबंधन, माता-पुत्र के लिए सकट चौथ (माघ कृष्ण चतुर्थी) आदि अनेक पर्व है जो पारिवारिक रिश्तों में प्रेम और अपनत्व को प्रदर्शित करने हेतु मनाये जाते है. क्या आपने इनको मनाने का प्रयास किया है या किसी ने आपको इन्हें मनाने से रोका है? वैलेंटाइन डे के नाम पर जिस प्रेम प्रदर्शन की अभिव्यक्ति का समर्थन किया या करवाया जा रहा है दरअसल वह प्रेम नहीं प्रेम के नाम पर उश्रन्खल वासना को सामाजिक स्वीकार्यता दिलाने का कुत्सित प्रयास है. इस प्रयास में वे सभी बहुराष्ट्रीय कंपनिया और उनके दलाल (मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, पेज थ्री पर्सनालिटी आदि ) शामिल हैं जिन्हें एक पूरी पीढी के भोगवादी बन जाने से फायदा पहुँचता है क्योंकि ये वो पीढी है जिसका मंत्र है "लव के लिए साला कुछ भी करेगा...." - मतलब चोरी, डकैती, लूटपाट, हत्या और बलात्कार......... कुछ भी!!!!
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