Sunday, November 9, 2008

ब्लॉग पर पहला दिन

ब्लॉग पर मेरा पहला दिन है. मैं यह ब्लॉग अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी को समर्पित करता हूँ. हमारा देश विभिन्न भाषाओँ, धर्मों, संस्कृतियों का संगम है. हमारा देश विभिन्नताओं में एकता की एकमात्र अनूठी मिसाल है जिसको सारी दुनिया मानती है. हिन्दी हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा है. वैसे तो हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा है लेकिन हमारे देश में अधिकतर लोग हिन्दी भाषा अपनाने में हिचकिचाते हैं. हिन्दी में पढने, लिखने या बोलने में लोग शर्मिंदगी महसूस करते हैं. एक बार एक निर्धन औरत अपने बेटे से मिलने उसके पास शहर पहुँची. उसका बेटा अपने मित्रों के सामने अपने आप को बहुत अमीर जताता था. जब वह वहां पहुँची तो उसके बेटे ने अपने मित्रों से कहा की वह औरत उनके घर की नौकरानी है जिसे उसकी माँ ने उसका हालचाल पता करने के लिए भेजा है. हिन्दी की हालत भी आज उस माँ जैसी ही गरीब माँ जैसी है जिसे उसी के बेटे अपना कहने में शरमाते हैं. हिन्दी आज अपने ही देश में अपने ही लोगों के बीच बेगानी हो गई है.

कोई विदेशी व्यक्ति अथवा विदेशी प्रतिनिधि हमारे देश में आता है तो वह यहाँ आकर अपनी मातृभाषा ही बोलता है. किंतु हमारे देश के प्रतिनिधि विदेशों में जाकर हिन्दी की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा में ही बोलते हैं. ऐसा क्यों ? आज लोग अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में पढाना पसंद करते हैं जहाँ हिन्दी की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा को ज्यादा महत्व दिया जाता है. घरों में भी लोग अपने छोटे - छोटे बच्चों को अंग्रेजी बोलने के लिए ज्यादा प्रोत्साहित करते हैं. अंग्रेजी भाषा से हमारे संबोधन भी कितने बदल गए हैं. पिताजी को डैड, माँ को मॉम, चाचा को अंकल, चाची को आंटी.... कैसा अजीब लगता है. न वो अपनापन, न वो मिठास. लगता है किसी अपने से नही बल्कि किसी गैर से बतिया रहे हैं. आज जब कोई हाथ जोड़कर नमस्ते करता है तो कितना अच्छा लगता है. जब कोई छोटा बच्चा अपने से बड़े के पैर छूता है तो अनायास ही मन में एक अजीब सी खुशी की लहर दौड़ जाती है. उस वक्त मन को जो प्रसन्नता और सुकून मिलता है उसे शब्दों में बयान करना आसन नही है.

मैं अंग्रेजी का विरोध नही करता. अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए . उन्हें अंग्रेजी भाषा भी सीखनी चाहिए. किंतु हमें हिन्दी भाषा को भी किसी अन्य भाषा से कमतर नही आंकना चाहिए. हिन्दी भाषा विश्व की प्राचीन और महानतम भाषाओँ में से एक है. अच्छी शिक्षा ही बच्चों के उज्जवल भविष्य की आधारशिला होती है. इसके साथ ही हमें अपने बच्चों को अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति से भी दूर नही करना चाहिए. हमारा कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को अपने देश के गौरव और नैतिक मूल्यों से भी परिचित कराएं जिससे हमारे देश का मान और गौरव बढे.

आपका

प्रदीप

2 comments:

  1. DEAR PARDEEP JI,
    VERY GOOD MORNING,
    I MOHIT SHARMA READ UR BLOG ITS VERY NICE & GOOD.
    WISH U HAPPY DAY.
    ALL THE BEST.

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