Sunday, March 15, 2009

नो वोट और राइट टु रिकाल

भारत के लोकतंत्र को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में गिना जाता है। लेकिन आजादी से लेकर आज तक धीरे-धीरे यह लोकतंत्र से अपराधी-तंत्र में परिवर्तित होता जा रहा है। आज अकर्मण्य, बेईमान तथा भ्रष्ट जन-प्रतिनिधियों की प्रत्येक पार्टी में भरमार है। कोई भी पार्टी या दल ऐसा नही है जिसमें अपराधिक प्रवृति के लोग न हों। चौदहवीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो चुका है तथा पंद्रहवीं लोकसभा के लिए घमासान शुरू हो चुका है।पिछली लोकसभा का लेखा-जोखा देखें तो झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के 5 सांसदों में से 5 (100%), बसपा के 19 सांसदों में से 8 (42%), जद(यु) के 8 सांसदों में से 3 (38%), भाजपा के 138 सांसदों में से 29 (21%), कांग्रेस के 145 सांसदों में से 26 (18%) तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 43 सांसदों में से 7 (16%) सांसद दागी थे। नेशनल वाच द्वारा वर्ष 2004 के आम चुनाव को आधार बनाकर किये गए इस सर्वक्षण के अनुसार कुल निर्वाचित 539 सांसदों में से 125 यानि 23% सांसद दागी थे। पंद्रहवीं लोकसभा में किसी भी एक पार्टी को बहुमत मिलेगा, इसमें संदेह है। गठजोड़ की सरकार में जिसके पास ज्यादा सांसद होंगे वही किंगमेकर होगा। अतः इस बार भी अपराधिक प्रवृति ले लोग खुलकर मैदान में होंगे।

इस सब के लिए जनता-जनार्दन ही जिम्मेदार है, क्योंकि ऐसे दागियों को जनता ही चुनकर संसद में भेजती है। इसके लिए जनता भी अपने जिम्मेदारी से नही बच सकती है। ऐसा नही है कि जनता के पास इसका कोई विकल्प
नही है। राजनीति में अयोग्य लोगों को आने से रोकने के लिए निर्वाचन आयोग की नियमावली के नियम '49 ओ' में मतदाताओं को सभी प्रत्याशियों को नकारने का विकल्प दिया गया है। अगर मतदाता किसी भी प्रत्याशी को चुनाव की कसौटी पर खरा नही पता है तो वोटर रजिस्टर में फार्म '17 अ' भरकर सभी प्रत्याशियों को नकार सकता है। किंतु मतदाताओं में जागरूकता की कमी और निर्वाचन आयोग की नियमावली के नियम '49 ओ' का पर्याप्त प्रचार-प्रसार न हो पाने के कारण इसका ज्ञान अधिकांश मतदाताओं को नही है और इसका प्रयोग न के बराबर हो रहा है। पिछले कुछ समय से जन-प्रतिनिधियों की सदस्यता ख़त्म करने का अधिकार ' राइट टु रिकाल' भी चर्चा में रहा है। पिछले नवम्बर में दिल्ली में एक गोलमेज सम्मलेन में लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने भी सुझाव दिया था कि जनता के पास 'राइट टु रिकाल' होना चाहिए। 'राइट टु रिकाल' नई अवधारणा नही है। नगर सभ्यता के विकास से लेकर अब तक कई देशों में यह व्यवस्था है। इसके तहत अमेरिका में अब तक लगभग नौ मामलों में मेयरों और गवर्नरों को उनके पदों से हटाया जा चुका है। कनाडा, स्विट्ज़रलैंड और वेनेजुएला में भी यह व्यवस्था हैभ्रष्ट और बेईमान प्रतिनिधियों की सदस्यता को समाप्त करने का यह एक सशक्त नियम है, किंतु इसके दुरूपयोग से भी इंकार नही किया जा सकता है। जो वोटर तमाम बातों को जानते हुए भी दागी व्यक्तियों को चुन सकता है, वह उसे हटाने की प्रक्रिया में जागरूकता से हिस्सा लेगा, इसमें संदेह है

केवल नियमों या व्यवस्थाओं को बना देना ही
पर्याप्त नही होता है बल्कि उनके प्रति जागरूकता पैदा करना और उनका प्रचार-प्रसार कर उनकी सही जानकारी लोगों तक पहुचाने से ही उनकी प्रासंगिकता सिद्ध होती हैइस पूरी चुनाव प्रक्रिया का असर अंततः जनता पर ही पड़ता है। अतः मतदाताओं को भी अपने विवेक के साथ सही प्रत्याशी का ही चुनाव करना होगा , ताकि वह जनता के साथ वह न्याय कर सके।

5 comments:

  1. है।पिछली लोकसभा का लेखा-जोखा देखें तो झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के 5 सांसदों में से 5 (100%), बसपा के 19 सांसदों में से 8 (42%), जद(यु) के 8 सांसदों में से 3 (38%), भाजपा के 138 सांसदों में से 29 (21%), कांग्रेस के 145 सांसदों में से 26 (18%) तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 43 सांसदों में से 7 (16%) सांसद दागी थे। नेशनल वाच द्वारा वर्ष 2004 के आम चुनाव को आधार बनाकर किये गए इस सर्वक्षण के अनुसार कुल निर्वाचित 539 सांसदों में से 125 यानि 23% सांसद दागी थे।


    ghinauni aur sacchi tasveer....
    ab to halat ye aa gaye hai ki hamam mein sab nange hain....

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  2. 'वापस बुलाने का अधिकार' न तो इतनी जल्‍दी मिल पाएगा और न ही लोग उसका उपयोग करेंगे। किन्‍तु 'नो वोट' का अधिकार सबको आकर्षित करेगाा प्रावधान यह होना चाहिए कि यदि 'नो वोट' को पसन्‍द करने वालो का बहुमत हो तो उस चुनाव में खडे समस्‍त उम्‍मीदवार अगला चुना नहीं लड पाएंगे क्‍योंकि वे तो मतदाताओं द्वारा निरस्‍त किए ही जा चुके हैं।
    'नो वोट' हमें मिले, इसके लिए हम सबको प्रयत्‍न करा चाहिए। मैं बरसों से इस अभियान में लगा हुआ हूं।

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  3. यदि आप ठीक समझें और आपके लिए सम्‍भव हो तो कृपया अपने ब्‍लाग से 'वर्ड वेरीफिकेशन' की व्‍यवस्‍था अविलम्‍ब हटा लें। इस व्‍यवस्‍था से, टिप्‍पणी करने वाले हतोत्‍साहित होते हैं।

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  4. प्रदीप जी:
    नेगेटिव वोट भारत की कुल्भ्रष्ट हो चुकी राजनीती को स्वच्छ बनाने हेतु सबसे कारगर हथियार है जो लंबे समय से ड्यू है हमें. आजकल के ये नेता या संसद हमें यह अधिकार नहीं देने वाली. जन अभियान से ही मिलेगा यह हक़.
    कृपया वेबसाइट भी देखिये: www.mifindia.org

    ऐसे लेख लिखते रहिये.

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  5. Janta jaagrook hokar bhi kya kar payegi,jab uske saamne sabhi pratyashi apradhi hi honge..

    Aaj kitne sahi log rajniti me apni jagah bana pate hain ya party ka tikat prapt kar umeedwar ban pate hain.

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