स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लेकर अब तक लोकसभा चुनाव पर होने वाले सरकारी खर्च में बेतहाशा वृद्धि हुई है। सन1952 में हुए प्रथम लोकसभा के चुनाव में करीब दस करोड़ पैंतालिस लाख रूपये खर्च हुए थे। जबकि 2004 में चुनाव में लगभग तेरह अरब रूपये खर्च हुए थे। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के आंकडों के मुताबिक पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियाँ लगभग साढे तेतालीस अरब रूपये खर्च करेंगी। इसके अलावा क्षेत्रीय पार्टियाँ भी करीब दस अरब रूपये खर्च करने वाली हैं। इस चुनावी मौसम में अपने फायदे के लिए कई नेताओं ने डाक्यूमेंट्री-विज्ञापन फिल्में बनवाई हैं। लालकृष्ण आडवाणी, मायावती, मुरली मनोहर जोशी, केसरीनाथ त्रिपाठी के अलावा और भी नेताओं ने अपने ऊपर फिल्में बनवाने के लिए विज्ञापन एजेंसियों और फिल्मकारों की सेवाएं ली हैं। इन्हें बनवाने के लिए नेताओं ने कुछ लाख से लेकर करोड़ तक खर्च किए हैं। कांग्रेस पार्टी ने चुनावी प्रचार के लिए अपना बजट लगभग 150 करोड़ रूपये निर्धारित किया है। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इस मद में लगभग 250 करोड़ रूपये खर्च करने की तैयारी कर ली है। सिटी ग्रुप ग्लोबल मार्केट की रिपोर्ट के अनुसार, इस चुनाव में विज्ञापनों पर कम से कम 800 करोड़ रूपये खर्च होंगे। सेण्टर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर 8000 करोड़ रूपये खर्च हुए। खास बात यह है कि जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर 8000 करोड़ रूपये की रकम लगभग एक साल में खर्च की गई, वहीं भारतीय लोकसभा चुनाव पर करीब 10,000 करोड़ रूपये चंद महीनों में ही खर्च हो जायेंगे। विज्ञापनों के अलावा मतदाताओं के बीच भी एक बड़ी रकम लुटाई जानी है। इसे उचित ठहराते हुए नेताओं का मानना है कि चर्चा, पर्चा और खर्चा तो चुनाव में होना ही चाहिए। सोचने वाली बात तो यह है कि इतना पैसा आएगा कहाँ से!
ग्रह मंत्रालय के अफसरों के अनुसार फॉरेन कंट्रीब्युशन रेग्युलेशन एक्ट (FCRA) के तहत पिछले चुनाव में करीब 6 हजार 256 करोड़ रूपये विदेश से आए थे, जबकि ताजा आंकडों के मुताबिक अब तक 14 हजार 926 अरब रूपये FCRA की जानकारी में आए हैं। भारत में अमेरिका के राजदूत रहे डेनियल पैट्रिक ने अपनी किताब में लिखा कि केरल और पश्चिम बंगाल में सत्ता समीकरण बदलने के लिए उन्होंने श्रीमती गाँधी को पैसे दिए थे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष निजलिंगप्पा ने अपनी डायरी में लिखा कि श्रीमती गाँधी सोवियत संघ से पैसा लिया करतीं थीं। 2007 में क्रिस्टोफर आंद्रे ने अपनी पुस्तक "मित्रोखिन आर्काइव-टु" में ऐसे ही 375 लोगों के नाम प्रकाशित किए जिनके नाम सोवियत संघ से पैसा आता था। उन्होंने पूर्व प्रतिरक्षा मंत्री कृष्ण मेनन का नाम भी लिया। "मितोखिन आर्काइव-टु" में और भी कई सनसनी-खेज खुलासे किए गए। इसके अलावा सीआईए-मोसाद से आर्थिक मदद लेने के आरोप भाजपा पर भी लगे। रेमण्ड बेकर की पुस्तक "कैपिट्लिस्म अकिलीज हील" में भी खुलासा किया गया है कि पश्चिम से 5 लाख करोड़ डॉलर गरीब देशों में षडयंत्र करने और मर्जी की सरकार बनवाने के लिए भेजे गए।
बम-बन्दूक, दारू-शराब और दौलत के बिना चुनाव सम्भव क्यों नही है? क्या इस सब के बाद विदेशी ताकतें अपना हित साधने के लिए भारतीय राजनीति में घुसपैठ नही करेंगी? क्या इससे भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति प्रभावित नही होगी? इस सब को रोकना ही होगा, अन्यथा भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए एक गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा।
ग्रह मंत्रालय के अफसरों के अनुसार फॉरेन कंट्रीब्युशन रेग्युलेशन एक्ट (FCRA) के तहत पिछले चुनाव में करीब 6 हजार 256 करोड़ रूपये विदेश से आए थे, जबकि ताजा आंकडों के मुताबिक अब तक 14 हजार 926 अरब रूपये FCRA की जानकारी में आए हैं। भारत में अमेरिका के राजदूत रहे डेनियल पैट्रिक ने अपनी किताब में लिखा कि केरल और पश्चिम बंगाल में सत्ता समीकरण बदलने के लिए उन्होंने श्रीमती गाँधी को पैसे दिए थे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष निजलिंगप्पा ने अपनी डायरी में लिखा कि श्रीमती गाँधी सोवियत संघ से पैसा लिया करतीं थीं। 2007 में क्रिस्टोफर आंद्रे ने अपनी पुस्तक "मित्रोखिन आर्काइव-टु" में ऐसे ही 375 लोगों के नाम प्रकाशित किए जिनके नाम सोवियत संघ से पैसा आता था। उन्होंने पूर्व प्रतिरक्षा मंत्री कृष्ण मेनन का नाम भी लिया। "मितोखिन आर्काइव-टु" में और भी कई सनसनी-खेज खुलासे किए गए। इसके अलावा सीआईए-मोसाद से आर्थिक मदद लेने के आरोप भाजपा पर भी लगे। रेमण्ड बेकर की पुस्तक "कैपिट्लिस्म अकिलीज हील" में भी खुलासा किया गया है कि पश्चिम से 5 लाख करोड़ डॉलर गरीब देशों में षडयंत्र करने और मर्जी की सरकार बनवाने के लिए भेजे गए।
बम-बन्दूक, दारू-शराब और दौलत के बिना चुनाव सम्भव क्यों नही है? क्या इस सब के बाद विदेशी ताकतें अपना हित साधने के लिए भारतीय राजनीति में घुसपैठ नही करेंगी? क्या इससे भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति प्रभावित नही होगी? इस सब को रोकना ही होगा, अन्यथा भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए एक गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा।
इनको रोकना होगा: ऐसा आपने लिखा! कौन करेगा: भ्रष्ट राजनेता? स्वार्थ में डूबा आम भारतीय जिसे अपने घर के अलावा कुछ सूझता नहीं? डेमोक्रेसी के नाम पर करप्शन में डूबी वयस्था ? जब तक देश भक्त भारतीय मिल कर इस काम में नहीं जुटेंगे यह सोच कर की भारत को दूसरी आजादी दिलवानी है, तब तक यह काम नहीं हो पायेगा.
ReplyDeletesir mai pahali baar aapaki diary par aaya hoon yaha aakar kaaphi achha laga .... achhe lekh padhane ko mile ..... aapne mere ranging waale lekh par comment kiya tha jisake liye aapako dhaniybaad....
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